कोशिश

जो हो पायेगा उतना करेंगे
जो नहीं हो पायेगा प्रयास करेंगे
कहाँ जा रहें हैं
नहीं जानते हैं
पर जो कर पायेंगे उतना करेंगे

यह सपने टूटने पर आवाज़ भी नहीं करते
हर बिखरे सपनों के बीजों में
गंगा के बीच में अंधेरी
ठंडी रात जिस लो को देख कर
गुज़ारी उस फकीर ने
ऐसे कई नये अंगारे हैं

नहीं, सपने तो टूटने के लिए होते हैं
बिन बुलाये आये थे बिन बताये चले जातें हैं
टूटे सपनों की सीढ़ी पर चढ़ना भी वाजिब हैं
क्योंकि सपनों के पल्लों के टूटने से नहीं
सपनों की सीढ़ी से गिरते हैं हम
जब सपने देखना छोड़ देते हैं

झूठों की नींव पर बड़े महल बने हैं
इस झूठ की नाव पर बहे जाते हैं
जो बन पड़ता है वो करते हैं
जब तक थक नहीं जातें हैं

हाँ, जितना कर पायेंगे उतना करेंगे
जब नहीं हो पायेंगे थोड़ा आराम करेंगे
क्यों कर रहें हैं नहीं जानते हैं
पर जितना बन पायेंगे उतना करेंगे
जब नहीं कर पायेंगे तो आराम करेंगे

मानव राठी
मगसर २०२३